O P Nayyar’s Unseen Songs – Part 2 पर्देपर न दिखनेवाले ओपी के गाने – भाग २
O P Nayyar’s Unseen Songs – Part 2 पर्देपर न दिखनेवाले ओपी के गाने – भाग २
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O P Nayyar’s Unseen Songs ‘पर्देपर न दिखनेवाले ओपी के गाने – भाग १’ पढने के लिए याह क्लिक करें
भाग दुसरा शुरु: O P Nayyar’s Unseen Songs Part 2
तो आईए सुनते हैं ओपीजी के गाने जो कभी स्क्रीन पर नहीं आये, और जानेंगे कि इसके पीछे क्या है। गानों का कोई खास क्रम नहीं है, लेकिन शुरुआत में ज्यादा लोकप्रिय गाने लिए है, जो आपको हैरान कर देंगे और आपको बुरा भी लगेगा कि ये गाने फिल्म में नजर नहीं आ रहे है।
आईए इस कड़ी की शुरुआत फिल्म ‘सावन का घटा’ के एक बेहद लोकप्रिय गाने से करते हैं।
१९६४ में आई फिल्म ‘काश्मीर की कली‘ के लिए ओपीजी ने निर्माता और निर्देशक शक्ति सामंता के सुझाव पर करीब १५-१६ गाने बनाये थे। ‘कश्मीर की कली’ फिल्ममें उनमेसे ९ का उपयोग किया, और यह संगीत बहुत लोकप्रिय भी था, आज भी हैं। शेष गाने शक्ती सांमता ने अपनी अगली फिल्म, १९६६ की ‘सावन की घटा‘ में किया। फिल्म ‘सावन का घटा’ में कुल ८ गाने हैं। इनमें मो. रफ़ी और आशा कि आवाज में एकमात्र युगल गीत रिकॉर्ड किया गया था, लेकिन स्क्रीन पर नहीं दिखाया गया था। यह वास्तव में दर्शकों का दुर्भाग्य है।
यह बात है, ‘मो. रफ़ी और आशा द्वारा गाया गया एक बहुत लोकप्रिय गीत, ‘ओठोंपे हसी, आखोंमें नशा’। भले ही ये फिल्म में न हो लेकिन गाना सुननेवालों का फेवरेट बन गया है।
सतारी के साथ सारंगी कि धून से गाना शुरू होता हैं। सतार के साथ, गाने में सारंगी, वायलिन, गिटार, बांसुरी और खास ओपी शैली की तांगा लय (Tonga Rhythm) भी है। उस समय उस्ताद रईस खान (सतार), पंडित रामनारायण (सारंगी), पं. हरिप्रसाद चौरसिया (बांसुरी) और पं. शिवकुमार शर्मा (संतूर) जैसे प्रतिष्ठित वादकोंने ओपीजी के वादक के रूप में अपना कौशल दिखाया है। पहले अंतराल में बांसुरी और सितार और दूसरे अंतराल में सितार और गिटार बजते हैं, और गीत बांसुरी की धून के साथ समाप्त होता है। इन विभिन्न प्रयोगों ने गीतों की ऊंचाई बहुत अधिक बढ़ा दी है। सारंगी का माधुर्य पूरे गीत में एक रहस्यमय और रोमांचकारी माहौल बनाता है। गीत को सुनते समय गीत की ताल के साथ-साथ ऐसा लगता है जैसे हम क्षणिक लहर में बह रहे हैं, (वैसे, मैंने कोई संगीत नहीं सीखा है, इसलिए गलती हो वाद्य के नाम में सकती है)| इतना ही नहीं, इस गाने में तीन बार आने वाला ‘क्या बात है…’ शब्द आशाजी ने हर बार अलग-अलग अंदाज में बोला है, उन्हें खुद ही महसूस कर सकते हैं।
आईए, यह गाना सुनकर एक बार यह महसूस करें और आनंद लें! और हमें भी बताएं।

By Source, Fair use, https://en.wikipedia.org/w/index.php?curid=57731119
Source: Madhu Nair
अगला गाना फिल्म ‘नया दौर’ का एक पूरी तरह से अनजान गाना है।
१९५७ की सर्वश्रेष्ठ हिट फिल्म ‘नया दौर‘। फिल्म के गानों ने ओपीजी के करियर को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया। इन फिल्मों के गीतों के लिए, ओपीजी ने वर्ष १९५८ के सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का फिल्मफेयर पुरस्कार जीता। यह एकमात्र फिल्मफेयर पुरस्कार है जो उन्हें मिला है। इस फिल्म के पंजाबी स्टाईल गानों ने काफी लोकप्रियता हासिल की थी और यह आज भी जारी है। फिल्म में एक कुल सात गाने हैं, लेकिन आशाजी का एक भी एकल गीत दिखता नहीं।
लेकिन इसी फिल्म के लिए आशाजी द्वारा गाया गया एकल गीत ‘एक दीवाना आते जाते हमसे छेड़ करे‘ रेकॉर्ड पर नही है और स्क्रीन पर दिखाई नहीं देता। अंजाने संग्राहकोंसे यह यूट्यूब पर यह मिला है|
शुरुआत में मधुबाला ‘नया दौर’ की हीरोइन थीं। इसलिए, उनके लिए ओपीजी द्वारा रचित गीत ‘एक दीवाना आते जाते हमसे छेड़ करे’ भी मधुबाला पर फिल्माया गया था। लेकिन कुछ कारणों से पिता की जिद के चलते मधुबाला ‘नए दौर’ से बाहर हो गईं और वैजयंतीमाला ने उसमें प्रवेश कर लिया। तो मधुबाला पर फिल्माया गया ये गाना भी फिल्म से बाहर निकला।
आइए सुनते हैं वह गाना।

Source:https://www.hindigeetmala.net/song/ek_diwana_aate_jate_humse_chhed_kare.htm
साल 1968 में रिलीज हुई फिल्म ‘कही दिन कहीं रात’ के सभी गाने शानदार थे। महेंद्र कपूर ने इस समय तक ओपीजी के कॅम्प में प्रवेश कर लिया था, इसलिए उन्होंने इस फिल्म के ‘यारोंकी तमन्ना है’ और ‘कमर पतली, नज़र बिजली’, इन दो एकल गीतों के साथ एक और एकल गीत गाया है, वह गाना रिकॉर्ड किया गया है, लेकिन स्क्रीन पर दिखाई नहीं देता (O P Nayyar’s Unseen Songs)|
आइए सुनते हैं महेंद्र कपूर का दुर्लभ गाना, ‘तुम्हारे ये नखरे, तुम्हारी शरारत‘|

Source: Mahendra Kapoor – Topic Provided to YouTube by Saregama India Ltd.
१९७४ की फिल्म ‘प्राण जाये पर वचन ना जाये’ ओपीजी और आशाजी के बीच सहयोग की अंतिम फिल्म रही। आगे ओपीजी को फिल्में मिलना बंद हो गया, रिकॉर्डिंग स्टूडियो के लिए बुकिंग मिलना भी मुश्किल हो गया। ४ साल की लंबी अवधि के बाद, उनकी तीसरी वापसी १९७८ में हुई, ‘खून का बदल खून’ फिल्मसे, लेकिन फिल्म और उसके गाने नहीं चले।
अगले साल १९७९ में ओपीजी ने फिल्म ‘हिरा मोती‘ में फिर से अपना जादू दिखाया। उन्होंने ‘हीरा मोती’ के नयी गायिका ‘दिलराज कौर‘ को कुल ५ गाने दिए, जिनमें से तीन एकल हैं। इन तीन सोलो में से सबसे खूबसूरत गाना ‘तुम खुदको देखते हो’ पर्दे से गायब है, पता नहीं क्यों? इस गाने में ओपीजी की पूरी छाप है, साथ ही यह एक नई आशा भोसले को बनाने की कोशिश को भी दर्शाता है।
आइए सुनते हैं दिलराज कौर की आवाज ‘तुम खुदको देखते हो’।

Source: https://en.wikipedia.org/wiki/File:Heera-Moti.jpg
Dilraj Kaur – Topic Provided to YouTube by Saregama India Ltd
ओपीजी और बच्चेका गीत? वो कैसे संभव है? (वास्तव में यह मेरे अगले लेख के लिए एक अलग विषय होने जा रहा है)। ओपीजी ने गीतों के माध्यम से विभिन्न विषयोंपर गीतों की रचना की है, लेकिन अपनी छाप छोड़कर!
१९७१ की पारिवारिक फिल्म ऐसा भी होता है’ में नायिका पर चित्रित एक गाना है। लगभग डेढ़ साल के बच्चे को उसकी माँ सुलाने के लिए या उसके साथ खेलने के अवसर पर ये गाना गाती है ऐसा लगता होता है। फिलहाल यह पता नहीं चल पाया है कि इस फिल्म के प्रिंट्स का क्या हुआ? फिल्म के व्हिडीओ कही देखने नही मिलते, लेकिन फिल्म के ४ गाने रिकॉर्ड किए जा चुके हैं।
उनमें से ‘चांद रातोको निकले ना निकले’ गाना बहोत अच्छा है। एस. एच बिहारी का लिखा यह गाना मेरा बहुत पसंदीदा है। गाना सुनते ही आंखों में आंसू आ जाते हैं। ओपी शैली का विशिष्ट ऑर्केस्ट्रा बजाया गया है। गाने की शुरुआत में आशाजी ‘चांद रातोको निकले ना निकले’ इस शब्दों का उच्चारण जिस तरह करती हैं, वह एकदम लाजबाब हैं।
चलीए सुनते है गाना, ‘चांद रातोको निकले ना निकले’.

Source: https://gaana.com/album/aisa-bhi-hota-hai
Source: Asha Bhosle Official Provided to YouTube by Sa Re Ga Ma
फिल्म ‘मिट्टी में सोना’ १९६० में रिलीज हुई थी। वह कहां गयी, उसके प्रिंट कहां गए, कुछ पता नहीं चलता। उसके वीडियो कहीं नहीं मिल रहे हैं। (शायद यह फिल्म कुछ दिनों के लिए सिनेमाघरों में दिखायी थी)। लेकिन रेकॉर्डस् में इस फिल्म के गाने सुने जा सकते हैं। प्रदीप कुमार और वैजयंतीमाला अभिनीत फिल्म के सात गीतों में से दो गाने गीतकार राजा मेहदी अली खान द्वारा लिखे गए है।
उनमेंसे पहला गाना उड़ता हुआ लेकिन खास ओपी स्टाइल का गाना है ‘आँखोंसे आँख मिली, दिलसे दिल टकराने दो‘ रफीजी और आशाजी द्वारा गाया गया एक श्रव्य गीत है। यह गाना कम ही सुननेको मिलता है, इसलिए इसे आपके लिए सुना जा रहा हूं। इस गाने में भी आशाजी हर बार ‘ना बाबा माफ करो…‘ इन शब्दोंका उच्चारण हर बारा अलग ढंगसे करती हैं। साथ ही रफीजी हर बार “आंखों से आंख मिली” और “… टकराने दो” शब्दों का अलग-अलग उच्चारण करते हैं, कैसे? तो गाने में इसे सुना जाए।
और दूसरे गाने के बारे में क्या? इसे ओपीजी और आशाजी की जोड़ी के बेहतरीन गानों में से एक माना जाता है। इतना खूबसूरत गाना हम पर्देपर देख नही पाते है, यह अभिशाप कम है कि, इस गाने का दूसरा अंतरा (या दूसरा भाग) भी रिकॉर्ड में नहीं है। यह कहां मिला, पता नहीं, लेकिन उन सभी गुमनाम संग्राहकों को हार्दिक धन्यवाद। (जिज्ञासु इस गीत के दुसरे अंतरे के लिए हमें संपर्क करें)।
क्या एक महान गीत को इतना शापित होना चाहिए? मैं जो कह रहा हूं वह गीत है, पूछो न हमें, हम उनके लिये, क्या क्या नज़राने लाये हैं‘! पियानो पर शुरू होने वाला गाना आपको एक अलग ही दुनिया में ले जाता है। पूरे गाने में पियानो की साथ हैं।
आईए, सुनते हैं ये दोनों गाने।
Source: Shankar Iyer – https://www.youtube.com/channel/UC7esakVMsqzaQzpJ8XalvDw
Source: Madhu Nair –https://www.youtube.com/channel/UCLzMnHBKANKLGbvW0LQge9g
ओपीजी ने मन्नाडेजी को सिर्फ चार-पांच गाने ही दिए हैं। इसमें कोई एकल नहीं है। अब सुनिए किशोर कुमार अभिनीत १९५८ की फिल्म ‘कभी अंधेरा कभी उजाला‘ में मन्ना डे और आशा भोसले द्वारा गाया गया युगल गीत ‘बाहों को ज़रा लहरा दे’| यह गाना पर्दे पर नहीं है, इससे जादा जानकारी मेरे पास नही हैं । वैसे भी मन्ना डे और आशा भोसले के बहुत कम युगल गीत हैं। इस लिए गाने का मजा ही कुछ अलग है।
Source: Asha Bhosle Official Provided to YouTube by Sa Re Ga Ma
अब सुनिए इस कड़ी का आखिरी गाना। गीत को जानबूझकर अंत में रखा गया है, क्योंकि यह अब तक सुने गए इन सभी शापित और दुर्भाग्यपूर्ण गीतों की सूची में सबसे ऊपर है।
१९७४ में प्रदर्शित फिल्म ‘ ‘प्राण जाये पर वचन ना जाये’ के एक गाने की कहानी अलग और दुखद है। ओपीजी और आशाजी का लगभग १५ साल का सहयोग इस फिल्म के बहुत प्रसिद्ध और भावपूर्ण गीत ‘चैन से हमको कभी’ के साथ समाप्त हुआ। इन गानों की रिकॉर्डिंग साल १९७२ में पूरी हुई थी, यह पहले से तय था कि यह गाना ओपीजी और आशाजी इन दोनों के करियर का आखिरी गाना होगा, यह बात पहेलेसे तय थी, इसलिए इन दोनों ने इस गाने में अपनी कला का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया है।
ओपीजी के निकटतम गीतकार एस. एच. बिहारीजी ने इस जोडी के आखरी गाने की सिच्युएशन से मिलता जुलता बहुत ही अच्छा गीत लिखा जो सभी के दिल को छू गया। ओपीजी ने इस गाने को अपनी स्टाईल्स से अलग तरीके से रचाया, गाने में कमसे कम इंस्ट्रुमेंट्स का उपयोग करके बनाया गया है। गाने में केवल गिटार (?), बांसुरी, पियानो और बास वाद्ययंत्र ही सुने जाते हैं। (इस विषय में मेरी जानकारी थोड़ीही नहीं बल्कि बहुतही कम है, विशेषज्ञों विनंती है इस अनुरोध पर जादा जानकारी टिप्पणियों में सूचित करें)।
उस जमानेसे विपरीत, फिल्म के रिलीज होने से कुछ महीने पहले नवंबर १९७३ में यह गाना रेडियो सीलोन पर पहली बार सुना गया था और यह बहुत लोकप्रिय हुआ। लेकिन १९७४ की फिल्म में यह गाना कभी पर्देपर नहीं दिखाया गया। पर्दे के पीछे क्या हुआ, इसके बारे में कई मिथक हैं। फिल्मफेयर पुरस्कार विजेता गीत का फिल्म में न होने का यह एकमात्र उदाहरण होना चाहिए।
फिर भी इस गाने की बदकिस्मती अभी भी पीछे नहीं है, ऐसा भी सुना जाता है की, जब सरकार (सेंसर बोर्ड) ने रेडियो पर बज रहे इस गाने के पहले अंतरे की दुसरी दो पंक्तियों पर आपत्ति जताई तो उन दो पंक्तियों को बदलना पड़ा, फिर वो दो पंक्तियोंको बदलकर गाना फिर से रिकॉर्ड किया गया। इसलिये इस गानेके दो संस्करण सूनने को मिलते है, एक दूरदर्शनपर दिखाई दिया और दुसरा रेकॉर्डपर मुद्रित है। इस गाने के ये दोनों संस्करण आप नीचे सुन सकते है।
गाने की कहानी अभी खत्म नहीं हुई है। जैसे ही यह गाना बहुत लोकप्रिय हुआ, आशाजी को इस गाने के लिए सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायिका का १९७५ का फिल्मफेयर अवार्ड भी मिला। मार्च १९७५ में फिल्मफेयर पुरस्कारों में आशाजी की अनुपस्थिति में, ओपीजी ने स्वयं इस पुरस्कार का स्वीकार किया। इस अवार्ड के कार्यक्रम के बाद घर जाते समय, ओपीजी ने कार को सड़क के किनारे रोक दिया, और इससे पहले किसीको कुछ पता चले, वह फिल्मफेअर पुरस्कार ओपीजी ने खिड़की से बाहर फेंक दिया। सड़क किनारे लाईट के खंबेपर गिरकर उसके टुकड़े-टुकड़े होने की आवाज सुनते ही ओपीजी आगे बढ़े। यह कहानी उनके निकटतम एस. एच. बिहारी ने बताई है जो उस वक्त उसी कारमे उनके साथ बैठे थे।
चलीये, सुनेते है यह दुर्भाग्यपूर्ण गाने के दो रूप!

पहिले अंतरे के आखरी दो पंक्तियों मूल रूपमे दूरदर्शवरपर दिखाया गया गाना
Source: The Listener – Chain Se Humko Kabhi Aapne Jeene Na Diya Asha Bhosle Live Doordarshan
पहिले अंतरे के आखरी दो पंक्तियों बदले हुए रूपमे रेकॉर्डपर मुद्रित गाना
Source: Asha Bhosle Official Provided to YouTube by Saregama India Ltd
(यह लेख मुलत: मराठी भाषा मे मैने लिखा है, उसीका हिंदी भाषामें रूपांतर करते समय कुछ कमीया रही है ऐसा मुझे लगता है, इसलिये मैं पाठकोंसे क्षमा मांगता हूँ।)
यह दूसरा भाग लिखते समय मुझे लगा कि मुझे ज्यादा कुछ नहीं लिखना पड़ेगा। लेकिन अंत में हमें लेख की सीमाओं के कारण रुकना पड रहा है। ओपीजी के और भी ऐसे गाने हैं जो अभी तक पर्देपर दिखते नही, लेकिन वे ज्यादातर बिना रिलीज़ हुई फिल्मों के हैं। उसके बारे में फिर कभी लिखूंगा।
तो चलिए यहीं रुकते हैं। अभी भी बहुत लोकप्रिय और विभिन्न विषयों पर आधारित गीत अगले भाग में होंगे।
O P Nayyar’s Unseen Songs – Part 2 पर्देपर न दिखनेवाले ओपी के गाने – भाग २, इस लेखके सर्वाधिकार: लेखक आणि संकलक – चारुदत्त सावंत, २०२१. मोबाईल क्र. ८९९९७७५४३९
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Songs are very melodious ,
What wonderful creation of unseen unheard songs of LEGENDARY MUSIC DIRECTOR OPNAYYAR you have presented. How much hard labour you have put in.
Congratulations
I enjoyed each & every song presented by you.
LAL CHAND SOOD
OPNAYYAR FAN
Thank you Sir,
Please listen to 3 rare songs sung by OPji in his own voice in following link:
https://charudattasawant.com/2020/10/27/singer-inside-music-composer-2/