O P Nayyar’s Unseen Songs पर्देपर न दिखनेवाले ओपी के गाने – भाग १
O P Nayyar’s Unseen Songs पर्देपर न दिखनेवाले ओपी के गाने – भाग १
ओंकार प्रसाद नय्यर, जिन्होंने १९५२ में संगीतकार के रूप में अपना करियर शुरू किया था। ओ. पी. नय्यर का करियर 1995 तक चला। हालांकि उनका असली करियर १९५२ की ‘आसमान’ से लेकर १९७४ की ‘ प्राण जाये पर वचन न जाये‘ तक माना जाता है। बेशक बीच की अवधि में बहुत बड़ी अंतर है। वह संगीतकार के रूप में लगभग तीन या चार बार वापसी करा चुके हैं। उनका पूरा करियर लगातार चर्चा में रहा। बॉक्स ऑफिस पर उनके गानों का दबदबा, सबसे महंगा संगीतकार, ओपीजी और आशा भोसले द्वारा एक-दूसरे के साथ लगाव, ओपीजी का प्यारा गायक मोहम्मद रफी के साथ नाराजगी, ऑल इंडिया रेडियो पर ओपीजी के गीतों पर प्रतिबंध (ओपी के गीतों रेडिओ सिलोन पर को सुनने पडते थे), फिल्मके पोस्टरपर केवल संगीतकार ओ. पी. नैयर की तस्वीरें छप जाना, गीतकार साहिर से हुई अनबन, आशा भोसले से नाता तोड़ना, राजकपूर के लिए रफ़ी की आवाज़ का इस्तेमाल, लता मंगेशकर की आवाज़ का बिलकुल इस्तेमाल नहीं करना, बी ग्रेड की फ़िल्में पाना, ८ से ९ साल तक गाने रिकॉर्ड करने के लिए कोई स्टूडियो नहीं मिलना, दिलराज कौर, रूना लैला, पिनाज़ मसानी, पुष्पा पागधारे और कुछ अन्य गायिकों में दुसरी आशा भोसले तैयार करने की कोशीश, परिवार से दूर अकेले रहकर जीवन बीताना और कई अन्य विवादों से उनका जीवन भरा था। वैसे भी आज यह हमारा विषय नहीं है।
उपरोक्त विवादों के साथ-साथ ओपीजी के संगीत करियर में कुछ और भी खास है। ओपीजी ने करीब ७२ फिल्मों के ५५० से ज्यादा गाने दिए हैं। ओपी के सभी गीत प्रसिद्ध हैं और अभी भी रेडियो या घर पर सुने जाते हैं।
और उन गानों को सिर्फ सुनना पडेगा, क्योंकि इनमें से ज्यादातर मशहूर गाने पर्दे पर कभी दिखाई देखे ही नहीं गए। ये गाने केवल रिकॉर्ड में मिल सकते हैं, देखे नहीं जा सकते। आप इन गानों को देखने के लिए भाग्यशाली नहीं हैं, हो सकता है कि आप टाइम मशीन से ऊस समय में वापस जाएं, फिर भी आपको इन्ही गानोमेंसे केवल चार या पांच गाने ही देखने को मिलेंगे। अन्य संगीतकारों को देखें, उनकी कई फिल्में तैयार हैं, लेकिन किसी कारण से उन्हें प्रदर्शित नहीं किया जाता है, या कभी-कभी एखाद गाना फिल्म से हटा दिया जाता है। तो आप उन गानों को स्क्रीन पर नहीं देखते हैं। आपको ऐसे गाने सुनने को मिलते हैं जो पहले ही रिकॉर्ड हो चुके होते हैं। लेकिन ऐसा लगता है कि यह अपवाद है। संगीतकार मदन मोहनजी के कई बेहतरीन गाने पर्दे पर नजर नहीं आते।
लेकिन ओपीजी के गीतों के मामले में, यह संयोग अधिक बार और बिना असफल हुआ प्रतीत होता है। इन गीतों की संख्या इतनी अधिक है कि मुझे लगता है कि मुझे इन पर एक नहीं बल्कि दो लेख लिखने होंगे।
यहां भी ओपीजी के गाने सबसे आगे हैं।
तो चलिए, अब सुनते हैं ओपीजी के गाने, जो कभी स्क्रीन पर नहीं आये, और इसके पीछे की कहानी को जान लेते हैं। गानों का कोई खास अनुक्रम नहीं है, लेकिन शुरुआत में ज्यादा लोकप्रिय गाने लिए हैं, जिसे सुनकर आपको हैरानी होंगी और आपको बुरा भी लगेगा, कि ये गाने फिल्म में नजर नहीं आ रहे हैं।
तो चलिए शुरू करते हैं, गीता दत्त के गाए गाने ‘जाता कहा है दिवाने, सब कुछ यहां है सनम’ से।
पूर्व अभिनेत्री वहीदा रेहमान ने १९५६ में ‘सी.आई.डी.’ फिल्म के माध्यम से हिंदी सिनेमा में अपना पहला कदम रखा। वह उस समय केवल १८ वर्ष की थी। ‘सी.आई.डी.’ फिल्म में उनका पहला एंट्री सीन एक क्लब डांसर के रूप में था। उस मौके पर वहीदा पर चित्रित किया गया गाना ‘जाता कहा है दीवाने, सब कुछ यहां है सनम‘ काफी लोकप्रिय हुआ था। गीता दत्त द्वारा गाया गया यह गाना बहुत लोकप्रिय हुआ था। लेकिन तभी सेंसर बोर्ड ने इस गाने पर ध्यान गया, बोर्ड ने गाने के फिल्मांकन पर आपत्ति जताई और गाने को फिल्म से हटाने के लिए कहा। निर्माता गुरु दत्त ने फिल्म से गाने को हटा दिया।
और ओपी के गाने को फिल्म से हटाने की प्रक्रिया यहांसें शुरू हुई। ओपीजी के अच्छे गाने अब शापित बन गये।

१९६२ की फिल्म ‘एक मुसाफिर एक हसीना‘ ओपी की दूसरी वापसी थी। लगभग दो साल के अंतराल के बाद ओपी दर्शकों के सामने एक नए रूप में पेश आये। उसके बाद १९६२ से १९६५ तक चार साल में सिर्फ चार फिल्में! (नाम के लिए पांचवीं फिल्म है, लेकिन मुझे लगता है कि यह एक देरसे रिलीज हुई फिल्म होगी)। इन चारों फिल्मों के सभी गाने आज भी हिट हैं। इन चारों फिल्मों में कुल मिलाकर चार गाने पर्दे पर नजर नहीं आते, सिर्फ सुने जाते हैं, आइए अब उन गानों को सुनते हैं।
१९६२ की फिल्म ‘एक मुसाफिर एक हसीना’ में एक से अच्छे एक और अधिक श्रव्य गाने हैं। इस फिल्म में मो. रफी और आशा भोसले ने कुल ५ युगल गीत गाए हैं। उनमेंसे एक गाना ‘मैं प्यार का राही हूं‘ सबसे लोकप्रिय कहा जा सकता है, लेकीन वह पर्दे पर उपलब्ध नहीं है। हालाँकि, रिकॉर्ड पर है इसलिए सून सकते हैं।कुछ जानकारों के मुताबिक फिल्म में इस गाने को पहले हफ्ते में पर्दे पर दिखाया गया था, फिर इसे हटा दिया गया। कुछ पुराने दर्शकों का कहना है कि यह गाना दूरदर्शन के शुरुआती दिनों में छायागीत/चित्रहार प्रोग्राम में देखा था। लेकिन अब जब हम इसे कहीं नहीं देख सकते हैं, तो चलीए, इस गाने को सुनने का आनंद लेते हैं।
इस गाने की एक विशेषता यह भी है कि इस गाने की रिकॉर्डिंग के समय भारी बारिश के कारण कई वादक ताड़देव के फेमस स्टूडियो में समय पर नहीं पहुंच पाये। लेकिन ओपी के सख्त अनुशासन के चलते, उन्होंने उपलब्ध वादककों को साथ लेकर गाने को पूरा किया, इसलिए इस गाने में आपको तालवाद्य कम सुनने को मिलते हैं, दरअसल आपको तालवाद्य सुनने को बिल्कुल भी नहीं मिलता।

Source: Asha Bhosle Official – YouTube Channel
हिंदी फिल्म संगीत में मील के पत्थर में से एक १९६४ की फिल्म ‘काश्मीर की कली‘ है, जो अधिक से अधिक मधुर गीतों से भरी है। इस फिल्म में कुल ९ गाने थे। इनमें से २ को बाद में हटा दिया गया। उनके वीडियो कहीं नहीं मिलते, लेकिन गाने सुने जा सकते हैं क्योंकि वे मूल साउंडट्रैक पर हैं। इन दोनों गानों को आशा भोसले ने गाया है।
खूबसूरत और मशहूर गाना ‘बलमा खुली हवा में’ फिल्म के रिलीज होने के एक हफ्ते बाद अचानक सेंसर बोर्ड ने गाने में अश्लीलता देखी और बोर्ड द्वारा फिल्म से गाने को हटाने के आदेश के बाद गाना स्क्रीन से गायब हो गया।साथ ही इसी फिल्म का दूसरा गाना ‘फिर ठेस लगी दिलको, फिर याद ने तडपाया’ को हटाना पड़ा क्योंकि फिल्म की लंबाई बढ़ रही थी।
चले, इन दोनों गाने का आनंद लें!

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१) दो गायकों की आवाज में एक ही गीत: https://charudattasawant.com/2021/05/30/one-song-two-variants/
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४) शंकर-जयकिशन के साथ किशोर और आशा: https://charudattasawant.com/2021/04/18/shankar-jaikishan-kishor-and-asha/
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१९६१ की अमेरिकी फिल्म ‘Come September‘ पर आधारित १९६० के दशक में दो हिंदी फिल्में बनी थीं। पहली थी १९६४ की ‘काश्मीर की कली’ और दूसरी १९६५ की ‘मेरे सनम’। संयोग से, दोनों फिल्मों के संगीतकार ओपी थे। फिल्म ‘मेरे सनम‘ में कुल ९ गाने थे, जिनमें से ३ युगल गीत थे। उनमेंसे ‘हम ने तो दिल को आपके कदमों पे रख दिया‘ गाना आज भी सभी का प्यारा प्रेम गीत है, जो फिल्म में बिल्कुल भी नहीं है। यह सुनकर बहुत हैरानी होती है। मुझे नहीं पता कि इस गाने के साथ अन्याय क्यों किया गया।
पहाडी राग पर आधारीत यह गीत वायलिन की कोमल शुरुआत से शुरू होता है और दिल को हिला देता है। गाने के अंतराल में सितार और साथ में जलतरंग के सुर मंत्रमुग्ध कर देती है। अंतराल में खास ओपी स्टाईल एक हल्का ऑर्केस्ट्रा और ढोलक की आवाज गीत की मिठास को बढ़ाता है। वायलिन की धुन पूरे गाने के साथ रहती है। मो. रफी और आशा भोसले द्वारा गाया गया यह गाना किसी कविता की तरह लगता है। जैसे मीठे और नमकीन भोजन की महक और स्वाद बहुत देर तक जुबान पर रहती है, वैसे ही गीत के अंत में वायलिन की धुन कानों में गुंजती रहती है। गाने का जादू दिमाग से तुरंत नहीं छूटता, लगता नहीं कि गाना खत्म हो गया है, आप अपने आप गाना गुनगुनाने शुरु करते हैं।
आइए इस अनुभव को आजमाएं!

१९६० की ढाई घंटे की फिल्म ‘बसंत’ में ओपीजी ने कुल १४ गाने दिये, जिनमें से ११ गीत मोहम्मद रफ़ी और आशा भोसले द्वारा गाए गए युगल गीत हैं। यह किसी एक फिल्म में गायकों द्वारा गाए गए सबसे अधिक द्वंद्व गीतों का रिकॉर्ड है। इन ११ गानों में से २ द्वंद्व गाने पर्दे पर नहीं दिखाई देते। हालाँकि, इसे साउंडट्रैक पर सुना जा सकता है। शायद इज फिल्ममें गीतों भीड यह एक कारण हो सकता ही की इन ये दो गाने फिल्मसे बाहर हैं। आइए, सुनते हैं फिल्म ‘बसंत’ के ये दो अदृश्य गाने!
दोनों गाने बहुत ही श्रव्य हैं। दोनों गाने एक साथ जोड़े गए हैं।
पहला गाना: कितनी बदल गयी है, जरा चाल देखीये, गायक: मो. रफी आणि आशा भोसले, गीतकार: कमर जलालाबादी
दु दूसरा गाना: ओ, मॅडम नॅन्सी, गायक: मो. रफी आणि आशा भोसले, गीतकार: शेवान रिजवी

दूसरा गाना: ओ, मॅडम नॅन्सी
Spurce: https://www.youtube.com/channel/UC4F5cdtKHc_weUbgj1GVsKg
उर्दू साहित्य की जानेमानी लेखिका पद्मश्री ईस्मत चुगताई ने साहित्य के साथ-साथ हिंदी सिनेमा के क्षेत्र में भी काम किया है। उन्होंने फिल्म कहानी, संवाद लेखन जैसे विभिन्न मोर्चों पर काम किया है। एक फिल्म निर्माता के रूप में, उन्होंने १९५८ में दो फिल्में बनाईं, ‘लालारुख’ और ‘सोने की चिड़ीया‘। इन दोनों फिल्मों के नायक मशहूर गजल गायक ‘तलत मेहमूद‘ थे। फिल्म ‘सोने की चिड़िया’ का निर्देशन इस्मत चुगताई के पति, प्रसिद्ध निर्माता और निर्देशक शाहिद लतीफ ने किया था।
तलत महमूद द्वारा फिल्म ‘सोने की चिड़िया’ में गाया गया गाना ‘प्यार पर बस तो नहीं है‘ बहुत ही सॉफ्ट प्रेम गीत था। तलत की कांपती तरल आवाज, साथ में आशाजी की आलाप ने ही इस गाने में वाद्यवृंद का काम किया है। सीधे शब्दों में कहें तो ओपीजीने बिना किसी अन्य ऑर्केस्ट्रा का उपयोग किए एक सुंदर गीत दिया है। यह गीत सब लोक जानते है।
लेलेकिन इससे भी खूबसूरत बात यह है, कि आशाजी ने इस गाने के मुखडे और धून पर आधारित एक गाना गाया है। इस गानेमें भी ऑर्केस्ट्रेशन कम है। गाना रेकॉर्ड पर है, लेकिन गाने को स्क्रीन से हटा दिया गया है।
आइए सुनते हैं आशाजी की आवाज में , ‘प्यार पर बस तो नहीं है’। गाने के गीतकार है साहिरजी।
जैसा कि लेख की शुरुआत में उल्लेख किया गया है, ओपीजीं के अनदेखे गाने एक लेख में फिट नहीं होंगे। दूसरा भाग लिखना हि पडेगा। तो चलिए यहीं रुकते हैं और बाकी के गाने अगले भाग में सुनते हैं।
और भी बहुत लोकप्रिय गाने अगले भाग में होंगे।
O P Nayyar’s Unseen Songs पर्देपर न दिखनेवाले ओपी के गाने – भाग १, इस लेखके सर्वाधिकार: लेखक आणि संकलक – चारुदत्त सावंत, २०२१. मोबाईल क्र. ८९९९७७५४३९
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