एक गीत के दो रूप One Song Two variants
एक गीत के दो रूप One Song Two variants
१९५०-६० के दशक में किसी फिल्म में गाने की रचना करते समय, अभिनेता या अभिनेत्री को नजर के सामने रखकर किसी विशेष गायक या गायिका को गाने के लिए आमंत्रित किया जाता था। लेकिन यदि मुख्य गायक/ गायिका समय की कमी या किसी अन्य कारण से उपलब्ध नहीं होते, तो वह गीत किसी अन्य गायक या दुसरे स्तर के गायक या नौसिखिया गायकों द्वारा गाया जाता। और उस गाने पर कलाकार लिप सिंकिंग और चेहरे की हरकतों और अभिनय से गाने का फिल्मांकन पूरा करते थे। बादमे मुख्य गायक/गायिका की आवाज में गाना फिर से रिकॉर्ड किया जाता था, और वही नये गानेको विनाइलपर रिकॉर्ड (Vinyl Records) करते थे या पडदेपर पर दिखाया जाता था। इसे कभी कभी गाने का डमी ट्रैक भी कहा जाता है और यह जानेमाने विधि थी।
कभी कभी कोई एक जानेमाने गायक द्वारा गाया गया गीत अच्छा होता है, लेकिन निर्माता या अभिनेता/अभिनेत्री की नापसंदी के कारण (मुझे इनकी आवाज सूट नही होती, इस भ्रम के कारण), या किसी और वजहसे रिकॉर्ड किये गीत को बांधके बाजूमे रखा जाता हैं, और उस अभिनेता/अभिनेत्री के पसंदीदा गायक/गायक द्वारा गाना फिर से रिकॉर्ड किया जाता था। और फिल्म में स्क्रीनपर दिखाया/सुना जाता था।
इन और कई अन्य कारणों से, हिंदी फिल्म संगीत के स्वर्णयुग में, आप दो गायकों की आवाज़ में एक गीत सुन सकते है (वास्तव में सुननेको नही मिलता, केवल जो आकाशवाणी या विविधभारती को नियमित रूप से सुनते हैं, उनमेसे कई श्रोताओंको ये जानते होंगे)। ये गाने थियटरके पडदेपर या ओरिजिनल साउंडट्रैक या विनाइल रिकॉर्ड पर नहीं मिलते हैं। इसे अपने जैसे चाहने वालों, चिकित्सकोंद्वारा ये मूल्यवान खजाना कुछ गुमनाम संग्रहकर्ताओने इसे YouTube और अन्य माध्यमसे से आपके लिए उपलब्ध कराया है। मैं वास्तव में उन गुमनाम संग्रहकर्ता प्रशंसकों को धन्यवाद देता चाहता हूं। ये खजिना मैं अभी आपके सामने खुला कर रहा हूं।
व्यक्तिगत रूप से यदि आप किसी गायक/गीतकार को पसंद करते हैं तो उसी गायक के गीतों को दूसरी आवाज में सुनना वास्तव में सौभाग्य की बात है। एक ही गाने को दो आवाजों में सुनने का मजा ही कुछ अलग होता हैं।
आइए अभी सुनें ये दुर्लभ गाने।
श्रोताओं के आनंद और जिज्ञासूओंकी सुविधा के लिए इन गीतों के दोनोंही संस्करणों की रिकॉर्डिंग एक साथ रखी गई है।
शुरुआत करते हैं 1956 में आई फिल्म ‘चोरी चोरी‘ के दो गानों से।
इस फिल्म के सभी गाने श्राव्य और लोकप्रिय हो गए। इन गीतों के लिए शंकर-जयकिशन ने १९५६ में सर्वश्रेष्ठ फिल्म संगीतकार का फिल्मफेयर पुरस्कार जीता था। लतादीदी द्वारा गाया मधुर गीत ‘पंछी बनू उड़के फिरू मस्त गगनमे’ और मन्ना डे के साथ लतादीदी द्वारा गाया युगल गीत ‘ये रात भीगी भीगी, ये मस्त फिजाये’ ऐसे मधुर गाने कौन भूल सकता है? आज ६५ साल बाद भी इन दोनों गानोंका असर आजभी कायम है।
शुरुआत में ये दोनों गाने गीता दत्त और एक पूरी तरह से अनजान गायक ‘भूषण’ की आवाज में पहले से ही रिकॉर्ड किए गए थे। गीता दत्त और भूषण द्वारा गाए गए ये दो गाने उन गानों से अलग अनुभव देते हैं जिन्हें हम जानते या सुनते हैं। (इस समय यह अज्ञात है कि इन दो गीतों को बाद में लताजी और मन्ना डे ने क्यों गाया था। मैंने पहली बार भूषण ज़का नाम सुना है, और मैं उनके बारे में और कुछ नहीं जानता। लेकिन भूषण ने मन्ना डे से अलग कुछ भी नहीं गाया है। गाने में भूषण ने भी यही भाव व्यक्त किया है। भूषण की आवाज रिकॉर्ड होने पर भी गाने का मिजाज नहीं बदलता (हालांकि इस बार भूषण वास्तव में नौसिखिए गायक थे, लेकिन गीता दत्त एक स्थापित गायिका थीं)।
आइए सुनते हैं दोनों गाने। क्या इन दोनों गानों को आज की भाषा में ‘कवर वर्जन’ कहा जाए या बाद के गानों में? इसे आप खुद तय करें। वैसे भी गीता दत्त और भूषण के दोनों गाने थोड़े कच्चे लगते हैं और परफेक्ट नहीं लगते। ‘पंछी बनू’ गाने का ताल वाद्य भी थोड़ा अलग लगता है और इस गाने में ‘हिलोरी, हिलोरी’ कोरस नहीं हैं।
गाना: पंछी बनू उड़के फिरू मस्त गगन में, चित्रपट: चोरी चोरी (१९५६), गीतकार: हसरत जयपुरी, संगीतकार: शंकर- जयकिशन
पंछी बनू उड़के फिरू मस्त गगन में
पंछी बनू उड़के फिरू मस्त गगन में
गाना: ये रात भीगी भीगी, चित्रपट: चोरी चोरी (१९५६), गीतकार: शैलेंद्र, संगीतकार: शंकर- जयकिशन
ये रात भीगी भीगी
ये रात भीगी भीगी
१९६८ में आई फिल्म ‘आदमी‘ के गानों में भी कुछ ऐसा ही कुछ गो गया है। फिल्म का गाना ‘ना आदमी का कोई भरोसा’ शुरू में महेंद्र कपूरजी की आवाज में रिकॉर्ड किया गया था। हालांकी गाने की रफ़्तार और ताल में फ़र्क है, लेकिन यह गाना मेरे पसंदीदा गायक महेंद्र कपूर की आवाज़ में सुनकर बहुत अच्छा लगा लेकिन यह गाना दिलीपकुमारजी पर फिल्माया गया है; फिर महेंद्र कपूर कि आवाज में यह गाना गाने का तो सवाल ही नहीं उठता। इसी गाने का ताल और ऑर्केस्ट्रा को बदलकर मो. रफी कि आवाज मी रेकॉर्ड किया गया, उसी गाने को स्क्रीनपर और रेकॉर्डपर मोहम्मद रफीजी की आवाज में सुना जा सकता है।
यही बात उसी फिल्म के दूसरे गाने के साथ भी है। हालांकि पहले गाने में महेंद्र कपूर के साथ जो अन्याय हुआ था उसे इस दुसरे गानेमें सुधारा गया, लेकिन इस बार तलत मेहमूदजी के साथ अन्याय हुआ। फिल्म का गाना ‘कैसी हसीन आज बहारोंकी रात है’ पहले रफी और तलत महमूद कि आवाजमें रिकॉर्ड किया था। लेकिन गाने की फाइनल रिकॉर्डिंग के दौरान तलत की तबीयत खराब हो गई और उनका काफी समय बर्बाद हो गया। तब ये गाना अन्य गायक से पुरा करनेका फैसला किया, तो महेंद्र कपूर को बुलवाया गया। सब जानने के बाद महेंद्र कपूर ने सबसे पहले तलत महमूद से मुलाकात की और उनकी माफी मांगी और उनकी अनुमति लेनेके बाद अपनी आवाज मी गाना रेकॉर्ड किया। इसलिए स्क्रीनपर मनोजकुमारजी के लिए की महेंद्र कपूर कि आवाज सुनी जा सकती है, लेकिन तलत महमूद की आवाज फिल्म के विनाइल रिकॉर्ड पर सुनी जा सकती है (रेकॉर्ड का चित्र नीचे दिया हैं)। आइए अब सुनते हैं ये दो गाने।
गाना: ना आदमी का कोई भरोसा, चित्रपट: आदमी (१९६८), गीतकार: शकील बदायुनी, संगीतकार: नौशाद अली
ना आदमी का कोई भरोसा
ना आदमी का कोई भरोसा
गाना: ‘कैसी हसीन आज बहारोंकी रात है’, चित्रपट: आदमी (१९६८), गीतकार: शकील बदायुनी, संगीतकार: नौशाद अली
कैसी हसीन आज बहारोंकी रात है
कैसी हसीन आज बहारोंकी रात है
१९५७ में आई फिल्म ‘प्यासा‘ का गाना ‘जिन्हें नाज है हिंदपर वो कहा है’ ये गाना मन्ना डे की आवाज में पहले रिकॉर्ड किया गया था। बाद में, मो. रफ़ी द्वारा गाए इस गाने को फ़िल्म के रेकॉर्डपर और पडदेपर इस्तेमाल किया गया। बेशक मो. रफी ने उस गाने को बहुत उंचाईपर ले लिया है। मन्ना डे की आवाज में गाना थोड़ा आधा-अधूरा लग रहा है। ऐसा क्यों हुआ यह बताने वाला अब कोई नहीं है। आइए सुनते हैं इन दो महान गायकों की आवाज में यह गाना।
गाना: ‘जिन्हें नाज है हिंदपर वो कहा है’, चित्रपट: प्यासा (१९५७), गीतकार: साहिर लुधियानवी, संगीतकार: सचिनदेव बर्मन
जिन्हें नाज है हिंदपर वो कहा है
जिन्हें नाज है हिंदपर वो कहा है
१९५७ में आई फिल्म ‘एक झलक’ के गाने ‘गोरी चोरी चोरी जाना बुरी बात है’ को खुद संगीतकार हेमंत कुमारजी ने गाया है। और फिर वही गाना मुकेशजी की आवाज में भी सुनाई दिया। यह गीत बहुत ही अपरिचित है। इस गाने के बारे में अब हमारे पास ज्यादा जानकारी नहीं है| तो आइए अब इस गाने को सुनते हैं।
गाणे: ‘गोरी चोरी चोरी जाना बुरी बात है ‘, चित्रपट: एक झलक (१९५७), गीतकार: एस. एच. बिहारी, संगीतकार: हेमंत कुमार
गोरी चोरी चोरी जाना बुरी बात है
गोरी चोरी चोरी जाना बुरी बात है
१९५०-६० के दशक के उत्तरार्ध में तत्कालीन प्रसिद्ध संगीत कंपनी ‘HMV’ ने विदेशों में ‘संस्करण गीतों’ (VER) की संकल्पना को हिंदी सिनेमा में पेश करने का प्रयास किया। इसमें एक महान गायक का प्रसिद्ध गीत दूसरे महान गायक द्वारा गाया गानेकी रिकॉर्ड बनाए और प्रकाशित किया गया। इस शैली का पहला गीत १९५७ में मोहम्मद रफी द्वारा फिल्म ‘भाभी’ का हिट गाना ‘चल उड़ जा रे पंछी’ तलत महमूद ने नए सिरे से गाया और ७८ RPM के रिकॉर्ड पर एक तरफ मो. रफ़ी का गाना और दूसरी ओर तलत का गाना ‘वर्जन रिकॉर्डिंग FT21027 ट्विन/ब्लैक लेबल ७८ RPM’ रिकॉर्ड किया गया। लेकिन यह संकल्पना हिंदी सिनेमा के मशहूर गायक./गायिका को रास नहीं आया। सभी गायक एक साथ मिले और चर्चा की और निर्णय लिया कि आप अपनी आवाज में किसी अन्य गायक के गीत को रिकॉर्ड नहीं करेंगे। इसलिए, ‘एचएमवी’ के ‘संस्करण गाने’ की अवधारणा को तुरंत बंद कर दिया गया था। लेकिन उससे पहले तलत की आवाज में पहले और आखिरी ‘संस्करण गाने’ रिकॉर्ड किए गए थे। आइए सुनते हैं तलत का गाया गाना ‘चल उड़ जा रे पंछी’।
गाणे: ‘चल उड जा रे पंछी’, चित्रपट: भाभी (१९५७), गीतकार: राजींदर कृष्ण, संगीतकार: चित्रगुप्त
चल उड जा रे पंछी
चल उड जा रे पंछी
अगले गाने की कहानी में थोड़ा ट्विस्ट है। ६० के दशक में एक फिल्म के लिए संगीतकार कल्याणजी-आनंदजी ने अपने पसंदीदा गीतकार इंदीवर और पसंदीदा गायक मुकेश द्वारा एक गाना रिकॉर्ड किया गया । पता नही वह कौन सी फिल्म थी, लेकीन उस फिल्म का आगे कुछ नहीं हुआ। इसलिए, रिकॉर्ड किए उस गए गाने को अप्रयुक्त छोड़ दिया गया था। बाद में १९९४ में संगीतकार कल्याणजी के बेटे विजू शाह ने फिल्म ‘मोहरा’ उस गाने को इस्तेमाल किया। गीतकार इंदिवरजी ने गीत के बोल में थोड़े बदलाव करके गीत को फिर से लिखा। आइए सुनते हैं ये दोनों गाने।
गाना: ‘ना कजरे की धार, ना मोतियों के हार’, चित्रपट: मोहरा (१९९४), गीतकार: इंदीवर, संगीतकार: विजू शहा, मूळ संगीतकार: कल्याणजी-आनंदजी
ना कजरे की धार
यां की आवाजमें – ना कजरे की धार
१९५४ की फ़िल्म ‘आरपार‘ से संगीतकार ओ. पी. नय्यर सिनेमा की दुनिया में एक नए सितारे के रूप में उभरे। फिल्म का ‘कभी आर कभी पार’ गायिका शमशाद बेगम का खास हिट गाना है और ६७ साल बाद भी उतना ही लोकप्रिय है, और यह रीमिक्स वालों का पसंदीदा गाना है। लेकिन इस गाने को शुरुआत में सुमन कल्याणपूर ने गाया था। बाद में इस गाने को रिकॉर्ड और फिल्म में शमशाद बेगम की आवाज में सुना जा सकता है. सुमन का गाना थोड़ा प्राथमिक अवस्था में लगता है। आइए सुनते हैं आज के एपिसोड में आखिरी गाना।
गाणे: ‘कभी आर कभी पार’, चित्रपट: आरपार (१९५४), गीतकार: मजरुह सुलतानपुरी, संगीतकार: ओ. पी. नय्यर
कभी आर कभी पार
कभी आर कभी पार
हिन्दी फिल्म संगीत में इतने गीत हैं कि संभव है कि इस प्रकार के कुछ गीत अभी बाकी हैं। जैसे ही वे ज्ञात होंगे, गीत आपके सामने फिर से प्रस्तुत किए जाएंगे।
अगले भाग में और नए विषय पेश किए जाएंगे।
एक गीत के दो रूप One Song Two variants – इस लेख का कॉपीराइट: लेखक और संकलक – चारुदत्त सावंत, २०२१, मोबाइल ८९९९७७५४३९
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excellent information on the songs I had heard Sumanji aarpar but Youtube tookit down the link doesnt work anymore there is Mannadey version of zindgi khwab hai from Jagte raho it is still there on youtube